**त्वरित व समय बध्य न्याय से ही भ्रटाचार को समूल समाप्त किया जा सकता है*:-


**त्वरित व समय बध्य न्याय से ही भ्रटाचार को समूल समाप्त किया जा सकता है*:-

*सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है।*

*सरकार भ्रष्ट हो तो जनता की ऊर्जा भटक जाती है। देश की पूंजी का रिसाव हो जाता है।* भ्रष्ट अधिकारी और नेता व व्यापारी धन को स्विट्जरलैण्ड जैसे टैक्स हेवन देशों को भेज देते हैं। या गोल्ड के निवेश कर देते है ।ये सभी देश की अर्थव्यवस्था व फोरेक्स रिज़र्व पर बहुत अधिक विपरीत प्रभाव डालते है ।

*सुझाव*

*सूचना के अधिकार ने सरकारी मनमानी पर कुछ न कुछ लगाम अवश्य कसी है*

*हम सुझाव करते है कि लंबित मामलों के शीघ्र निपटान के लिए प्रयास किए जाने चाहिए क्योंकि सतर्कता मामलों के निपटान में देरी से भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा मिलता है और कानून के अधिकार भी कमजोर हो जाते है।*

(1)भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।भारत में राजनीतिक एवं नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही व्यापक है ।

(2) आश्चर्य नहीं कि भारतीय अमीर समाज के भ्रष्टाचार के सबसे व्यस्त और अपराधी अड्डे अदालतों के परिसर बनते जा रहे हैं। अमीर निचली अदालत के अधिकांश फैसलों के विरुद्ध उच्च अदालतों में अपील दायर कर समय पास करते रहते है ।सिविल नेचर के केस में अदालतों के फैसले आने में कुछ केस में तो 8से 10 वर्ष भी लग जाते है
वर्तमान में विभिन्न अदालतों में करीब 3.5 करोड़ केस न्याय की प्रतीक्षा में पेंडिंग है ।
इसके निपटान के प्रति सभी स्टैक होल्डर को गंभीरता से विचार करना होगा ।

*किसी बुद्धजीवी ने सच ही कहा था कि अदालत न हो तो हिंदुस्तान में गरीबों को जल्द न्याय मिलने लगे।*

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है, यह एक आम मान्यता है। जब किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालती निर्णय आता है तो उसे लगता है कि जरूर न्यायाधीश ने विपक्षी लोगों से पैसे लिए होंगे या किसी और वजह से उसने अदालत का निर्णय अपने पक्ष में करवा लिया होगा। कहते सब हैं, पर डरते भी हैं कि ऐसा कहने पर वे अदालत की अवमानना के मामले में फंस न जाएं। उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। *अतः अदालतों को भी RTI के दायरे में लाया जावे । एवं अदालतों की कार्य प्रणाली के विरुद्ध टिप्पणी व सुझाव को अदालत की अवमानना की श्रेणी से तत्काल हटाया जावे ।*
(3) अदालतों के कार्य के धंटे बढ़ाये जावे 9:00 to 6:00PM सोमवार से शनिवार के साथ जब तक पेंडिंग केश समाप्त नही ही जाते अदालतों की छुटी पूर्ण रूप से समाप्त की जावे । केवल 26 जनवरी ,15अगस्त व 2 अक्टूबर को ही छुट्टी हो।

(4) अदालतों के रिक्त पद तत्काल यूद्ध स्तर पर भरे जावे ।जब हम प्रति वर्ष हजारों नए शिक्षको के नियुक्ति कर सकते है तो माननीय न्यायधीशों की की क्यो नही कर सकते है ....???????
(5) जहां पर सजा का प्रावधान 6 माह से कम है आर्थिक जुर्माना ₹ 20000 से कम है सभी केस केवल लोक अदालतों में निपटाए जावे । व लोक अदालते हर रविवार को अनिवार्य रूप से लगाई जावे इस हेतु प्रत्येक जिले में एक 15 सदस्यी पैनल रिटायर्ड जजो व बार कौंसिल के वरिष्ठ मानद सदस्यों को शामिल कर बनाया जावे जो लोक अदालतों में न्यायधीशों व आर्बिटर की भूमिका निभाए व अधिकतम 3 पेशी में अनिवार्य रूप से केस को समाप्त कर अपना निर्णय देवे । लोक अदालतों में लिये गए निर्णयों विरुद्ध कोई भी अपील नही की जा सकती है । तथा लोक अदालतों के निर्णय से किसी भी व्यक्ति व संस्था के भविष्य के हितों पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ेगा यह भी सुनश्चित किया जावे ।

*(6) जब तक हम रिस्वत देने वाले को भी बराबर का दोषी मानते रहेंगे यह हम अनजाने में भरस्टाचारी अधिकारी की मदद कर रहे है ।और व सक्छ (गवाह) के अभाव के कारण वे बचते रहेंगे।*
*अतः अब समय आ गया है भ्रस्टाचार व रिस्वत खोरी रोकने के लिये कानून में केवल लेने वाले को ही दोषी माना जावे*

*पूरा व्यापार जगत रिस्वत खोरी व भ्रटाचार व अवैध वसूली से परेशान है ।*
*अतः वास्तव में रिस्वत खोरी व भ्रस्टाचार को रोकना है तो तो रिस्वत का सक्छ उपलब्ध करवाने वाले को क़ानून बनाकर कर इम्युनिटी देने की लिखित गारण्टी देनी होगी तब ही भ्रटाचार व रिस्वत खोरी को रोका जा सकता है ।*
व उस व्यापारी के व्यापार को कोई भी अधिकारी किसी भी तरह की भविष्य में बाधा उत्पन्न नही करेगा यह सरकार का स्पस्ट संदेश होना चाहिये।

*अंग्रेजी काल से ही न्यायालय शोषण और भ्रष्टाचार के अड्डे बन गये थे।* उसी समय यह धारणा बन गयी थी कि जो अदालत के चक्कर में पड़ा,वह बर्बाद हो जाता है। भारतीय न्यायपालिका में भ्रष्टाचार अब आम बात हो गयी है। सर्वोच्च न्यायालय के कई न्यायधीशों पर महाभियोग की कार्यवाही हो चुकी है। न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार में - घूसखोरी, भाई भतीजावाद, बेहद धीमी और बहुत लंबी न्याय प्रक्रिया, बहुत ही ज्यादा मंहगा अदालती खर्च, न्यायालयों की भारी कमी और पारदर्शिता की कमी, कर्मचारियों का भ्रष्ट आचरण आदि जैसे कारकों की प्रमुख भूमिका है।

*वस्तुतः अदालतों में त्वरित निर्णय न हो पाने के लिए यह कार्यप्रणाली ज्यादा दोषी है जो अंग्रेजी शासन की देन है और उसमें व्यापक परिवर्तन नहीं किया गया है ।*

हकीकत तो यह है कि न्यायपालिका की शिथिलता
और अकुशलता से तो अपराध और आतंकवाद तक को बढ़ावा मिलता है।

*भारत में भ्रष्टाचार रोकने के लिए बहुत से कदम उठाने की सलाह देश के बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा दी जाती है। उनमें से कुछ प्रमुख हैं-*

(1)सभी सरकारी व निजी अधिकारी व कर्मचारियों (दैनिक मजदूरी को छोड़कर) को वेतन आदि नकद न दिया जाय बल्कि यह पैसा उनके बैंक खाते में केवल ऑनलाइन ट्रान्सफर के माध्यम से डाल दिया जाय.। सभी कर्मचारियों का KYC के लिये रोजगार प्रदाता के पास सभी कर्मचारियों का आधार कार्ड का नंबर रिकॉर्ड होना जरूरी किया जावे ताकि सरकारी सोशल योजनाओं का लाभ केवल जरूरत मंद पात्र व्यक्ति को ही मिले ।।

(2)बड़े नोटों ₹2००० के नोट का प्रचालन तत्काल बंद किया जाय.।

(3)जनता के प्रमुख कार्यों को पूरा करने एवं शिकायतों पर कार्यवाही करने के लिए समय सीमा निर्धारित हो।

लोक सेवकों द्वारा इसे पूरा न करने पर वे दंड के भागी बने।

(4)विशेषाधिकार और विवेकाधिकार कम किये जाएँ या हटा दिए जाएँ।

(5) जिस तरह करदाता को इनकम टैक्स रिटर्न्स प्रति वर्ष फ़ाइल करना अनिवार्य है सभी 'लोकसेवक' (मंत्री, सांसद, विधायक, ब्यूरोक्रेट, अधिकारी, कर्मचारी) अपनी संपत्ति की हर वर्ष घोषणा एक सार्वजनिक विशिष्ठ पोर्टल पर करें अनिवार्य किया जावे ।

जिसने समय पर घोषणा नही की चुनाव लड़ने का अधिकार नही होगा । चुनाव नामांकन पत्र के साथ पिछले पांच वर्षों की अपनी व अपने परिवार की संपत्ति की घोषणा पत्र जो पोर्टल पर अपलोड किया गया हो की download कॉपी अनिवार्य किया जावे ।


(6) भ्रष्टाचार करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया जाय. भ्रष्टाचार की कमाई को राजसात (सरकार द्वारा जब्त) करने का प्रावधान हो।

(7)चुनाव सुधार किये जाए और भ्रष्ट तथा अपराधी तत्वों को चुनाव लड़ने पर पाबंदी हो।

*(8) अदालती निर्णयों को गति देने के लिये Artificial intelligence (कृत्रिम बुद्धि) का प्रयोग किया जाय ।* यह वर्तमान समय की संबसे बड़ी जरूरत व मांग है ।

आपश्री की विनम्र निवेदन है इस समस्या के निदान के लिये तत्काल सार्थक प्रयास गंभीरता से के किये जावे । ताकि देश से भ्रस्टाचार जड़ से समाप्त हो सके ।
"न्याय में देरी न्याय न मिलने के समान है ।"

*(नोट / डिस्क्लेमर :- इस लेख का उद्देश्य अदालत की अवमानना करना कतई नही है । न ही किसी को दोषी मानना है । न ही किसी व्यक्ति या संस्था की भावनाओ को ठेस पहुचना है । ये मात्र किस तरह न्यायिक कार्यो को गति दी जावे एक चिंतन व सुझाव जो आम आदमी क्या सोचता है/ धारणा है पर आधारित है )*

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