Pavan Jha · @p1j
20th Jun 2013 from TwitLonger
#kedarnath
डूबने दो, बहने दो,
ये शहर, ये गाँव, ये घर,
गिरने दो पहाड़,
कटने दो रस्ते,
आसमान उमड़ पड़ा है,
चिंघाड़ रहा है,
बादल पिघल रहे है,
बह रहे है,
कुछ ख़त, कुछ सामान, कुछ लाशें,
कुछ लापता,
दर्द की विडम्बना है ये,
ये साँझा कर लेता है,
दो पलकें,
उन दो पलकों से और भी कई पलकें,
और निकल पड़ती है,
कविता
गंगा में उफ़ान नहीं लाती कविता,
न कम करती है,
ये बस सवाल पूछती है उस से,
जब हर घर मलबें में तब्दील हो गया,
कैसे बचा रह गया, उसका घर (केदारनाथ)..
वो साबित क्या करना चाहता है?
- Anil Jeenagar